कल्पना कीजिए, बिहार के मधुबनी से एक संगमरमर का शेर निकलकर मुंबई के प्रतिष्ठित ताज होटल तक पहुँचता है, जहाँ हर आगंतुक उसकी भव्यता को सराहता है। यह कहानी केवल एक शेर की नहीं, बल्कि विरासत, जुनून और गौरव की है।
यह प्रेरक यात्रा शुरू होती है मधुबनी के सरिसब पाही गाँव से, जहाँ विभूति नाथ झा नाम के एक प्रतिष्ठित IAS अधिकारी रहते थे। विभूति नाथ झा केवल एक अधिकारी नहीं थे; वे अपनी शाही जीवनशैली और शिकार के शौक के लिए भी जाने जाते थे। उनके दिल में एक विचार ने जन्म लिया—अपनी हवेली के सामने एक शेर की भव्य मूर्ति लगवाने का। उनके इस सपने को संगमरमर में ढाला गया और यह मूर्ति उनके दरवाजे पर एक प्रतीक बनकर खड़ी हो गई।
गाँव के बच्चे इस शेर की पीठ पर खेलते, परिवार और आस-पास के लोग इसे देखकर गर्व महसूस करते। लेकिन, जब समय बीता, तो इस अद्भुत विरासत को बनाए रखना मुश्किल हो गया। विभूति नाथ झा की पत्नी ने फैसला किया कि इसे ऐसी जगह दिया जाए, जहाँ इसकी सुरक्षा सुनिश्चित हो सके और इसकी भव्यता बरकरार रहे।
फिर आया वह ऐतिहासिक पल, जब 2007-08 में इस शेर को ताज होटल के लिए ले जाया गया। यह अब ताज होटल के प्रवेश पर खड़ा है, एक गौरवशाली विरासत का प्रतीक, जहाँ हर आगंतुक इसे देखता है और इसकी कहानी से प्रेरणा लेता है।
यह कहानी हमें सिखाती है कि विरासत केवल चीजों का संग्रह नहीं, बल्कि हमारे मूल्यों, सपनों और गौरव का प्रतीक होती है। मधुबनी का यह शेर अब केवल एक मूर्ति नहीं, बल्कि प्रेरणा और बिहार की संस्कृति का प्रतीक है।
याद रखें, सपने बड़े हों या छोटे, वे हमें और हमारी पहचान को अमर बना सकते हैं।
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